डैश बोर्ड

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Friday 1 July 2016

tum khawab ho....

तुम ख़्वाब  हो , दिल  को  समझाऊँ  कैसे
सांसो  की  बेचैनी  को  छुपाऊँ  कैसे ।

खुली  रखी  है  खिड़की मगर  डरती  हूँ ,
चाँद  को  हथेली  पर उतारूँ  कैसे ।

तुम  मेरा  रास्ता , मेरी  मंज़िल  हो
ये हक़ीक़त  तुम्हे  बताऊँ  कैसे ।

तुम्हारा  नाम  बिछ  गया  है
मेरी  पलकों  पर
ज़माने  से  तुम्हे  छुपाऊँ  कैसे ।

मचले हैं अरमान  तुम्हे  छूने
सज़दे में झुका  सर उठाऊँ  कैसे ।

दुआओं  की  सूरत  कहाँ  बदलती  है
सोचती  हूँ -
ख़ुदा  से  तुम्हे  मांगू  कैसे ।

Friday 15 April 2016

MANZIL

ब्यर्थ  ही  मे 

देखती  हूँ

सूने  गगन  को ,

चाँद ,तारे  तो

तुम्हारी आँखों  में  रहते  हैं।

इनको पाना मेरी मंज़िल  है ,

फिर क्यों  नहीं  बढ़ते  हैं  हाथ

जब ये निरपराध

टूट -टूट  कर  गिरते है।

मेरी मंज़िल  मेरे  पास

न जाने  कितनी  बार

आ -आ  कर  चली  जाती  है

मैं चकित  हो 

देखती रह  जाती  हूँ  चुपचाप ।









Monday 8 February 2016

RAAT-BHAR

तुम ख़्वाबों में आते रहे रात भर

हसरतें जवाँ होती रही रात भर ।

बादलों में छुपा चाँद मुस्कुराता रहा

चाँदनी बिखरती रही रात भर ।

नींद में डूबे पत्ते लिपटे रहे शाख़ से

रात रानी महकती रही रात भर ।

मिट्टी पर रेंगती रही बारिश की बूँदे

ख्वाइशें नहाती रही रात भर ।

Saturday 6 February 2016

ZINDGI

खुशी में भी आँखे नम जाती है
ज़िंदगी किस मोड़ पर तू मुझसे मिली है ।

रात भर जागते रहे थे तुम्हारी खातिर
आज पलकों पर है नींद का पहरा
जब तू सामने खड़ी है
ज़िंदगी किस मोड़ पर तू मुझसे मिली है ।

तमन्ना थी कल तक तुम्हे हँसता देखूं
आज तुम्हारी हँसी में मेरी उदाशी घुल गई है
ज़िंदगी किस मोड़ पर तू मुझसे मिली है ।

धुंधला हुआ जाता है चेहरा तुम्हारा
मत देखो मुझे मेरी आँखे भरी है
ज़िंदगी किस मोड़ पर तू मुझसे मिली है ।

Friday 29 January 2016

AB NAHI CHAAHTI HUN .

दायरों  में  सिमटी  ज़िंदगी ,
अब  नहीं  चाहती  हूँ
मिलन  समर्पण और विश्वास
अब  नहीं  चाहती हूँ ।

साँसे जब  मेरी हैं ,
तो क्यों धड़के तुम्हारे इशारों पर
बंधनों की ये जंज़ीरें
अब नहीं चाहती हूँ }

शिकायतें  अर्ज़ियाँ  लिख  कर
खुद  ही  पढ़  डाली  हैं
हक़  में  हो फैसला  तुम्हारे
अब  नहीं चाहती  हूँ |